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22 Jul 2021 · 1 min read

कविता- नैना

?️ नैना ?️
अरविंद राजपूत ‘कल्प’
सुंदर और सजीले नैना
नट-खट और हटीले नैना

करें शिकार शिकारी बन के
छल-बल छैल छबीले नैना

सुरा-सुंदरी से भी बढ़कर
है मदमस्त नशीले नैना

लाजवंती सी लाज है इनमें
छुई-मुई से शर्मीले नैना

नव-रस फीके जिसके आगे
रस-रस रसिक रसीले नैना

इंद्रधनुष के रंग सब फीके
प्रिय रॅंग रंगे रंगीले नैना

पलक पावडे बिछा रखे हैं
प्रेम-पगे पथरीले नैना

एक झलक की कीमत जीवन
हैं भारी खर्चीले नैना।

शस्त्र त्याग कर भागे शत्रु
देख-देख जोशीले नैना

चकाचौंध फीकी बिजली की
जब-चमके चमकीले नैना

तड़ित-प्रभा सम कौंध रहे हैं
दम-दम दमक दमीले नैना।

विरह वेदना में झरते जब
झर-झर आसूं गीले नैना

✍अरविंद राजपूत ‘कल्प’

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