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6 Jul 2021 · 2 min read

इंसानियत और धोखा "लघुकथा"

मिस्टर! चौबे एमआर का काम पिछले 10 वर्षों से कर रहे हैं। ज़िलें के अलग-अलग हॉस्पिटलों में डॉक्टरों से मिलना और दवाओं के बारे में बताना उनका पेशा है । एक दिन अपने काम की वजह से वो बलिया सदर हॉस्पिटल में डॉक्टर से मिलकर गेट की तरफ बढ़ ही रहे थे, कि एक व्यक्ति ने उन्हें रोक लिया। वो व्यक्ति बहुत जोर-जोर से रोते हुए उनसे कहता है कि मेरी माँ को दो यूनिट खून की आवश्यकता है, एक यूनिट खून उसे प्राप्त हो गये है यदि एक यूनिट आप दें-दें तो आपकी बड़ी मेहरबानी होगी। कोई व्यक्ति जो मुझे जानता-पहचानता नही बड़ी उम्मीद से मेरे पास आया है इसके उम्मीदों को तोड़ना उचित नही होगा। चौबे जी ने उस व्यक्ति से बोला भाई तेरी माँ एक यूनिट खून के नही मिलने से मरेगी नही क्योंकि मैं खून देने को तैयार हूं। चौबे जी एक यूनिट खून देकर घर की तरफ़ निकल गये। चौबे जी आज बहुत खुश थे कि मेरी वजह से किसी की माँ बच जाएगी, इससे भला काम जीवन मे क्या हो सकता है। चार दिन बाद चौबे जी फिर से सदर अस्पताल का दौरा किया तो अचानक से वही व्यक्ति उन्हें दिखा तो उन्होंने उससे-उसकी माँ का कुशल-क्षेम पूछा, उस व्यक्ति ने उनसे से कहाँ कि माँ अभी स्वस्थ है। चौबे जी उत्सुकता से पूछे कि क्या मैं तुम्हारी माँ से मिल सकता हूं, तो उस व्यक्ति ने कहा क्यों नही। चौबे जी वार्ड और वेड नंबर पूछा तो उसने कहा कि वार्ड नंबर 1 में वेड नंबर 4 पर उसका ईलाज चल रहा है, चौबे जी वार्ड की तरफ बढे तो उस व्यक्ति ने उनसे कहा कि वार्ड में समान ले जाना मना हैं आप अपना समान यही पर रख दो मैं यहाँ देखता हूं। चौबे जी अपना बैग और जूते वही छोड़ कर वार्ड 1 की तरफ बढे। वेड नंबर 4 पर पहुँचे तो देखते है कि एक व्यक्ति लेटा हुआ है, तो चौबे जी उससे पूछते है कि ये बेड तो खेमा देवी के नाम पर है, तो वो व्यक्ति उन्हें मना कर देता है। फिर चौबे जी वार्ड सिस्टर से पूछताछ करते है तो सिस्टर कहती है कि इस नाम से यहाँ कोई मरीज़ भर्ती नही हुआ। उसी समय चौबे जी को जोर का झटका लगता है चौबे जी भागकर बाहर की तरफ आते है तो देखते है कि वो व्यक्ति वहाँ नही है न ही उनका सामान। वो तुरंत समझ जाते है कि मेरे साथ इंसानियत के नाम पर धोखा हो गया।चौबे जी का बैग-बैग में रखा लैपटॉप कीमती डेटा और चार हज़ार रुपये लेकर भागा था जिसका उन्हें रत्ती भर दुख नही था। दुःख तो इस बात का था कि उसने मेरा खून ले लिया।

(स्व रचित)

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