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4 Jul 2021 · 1 min read

नेता के मरने का!

शीर्षक – नेता के मरने का!

विधा – कविता

परिचय – ज्ञानीचोर
शोधार्थी व कवि साहित्यकार
मु.पो. रघुनाथगढ़,सीकर राजस्थान
मो. 9001321438

मैं इंतज़ार कर रहा उस नेता के मरने का
पर पहले ही मार चुका गाँव की आत्मा को
नोंच डाले कई कोमल फूल और कली वो
हर बार प्यादे से फर्जी होकर चला टेढ़ा-टेढ़ा
श्वेत पोशाक कफन था जीवन भर पहने था।

नये चाँद की चमक तीखी चुभती आँखों में
फिर पुराने नेता मरें तो उपजे श्वेत पोशाकी
वहीं चाल-ढाल अस्मत लूटने वाली उसकी
लूटेगा बचपन,शोषण करेगा जवानी का अब
बुढ़ापे पर चोट करता छीन कर पूँजी सारी।

नेता बनने की राह सरल,करों घर भर लड़ाई
माँ-बहन को गाली दो,भाई से करो भिड़ाई
घर भर को पहले लूटो,समाजवादी हो जाओं
जितने जिस्म का भूगोल जानते जो लोग
वहीं बन सकते है हर सफल नेता देश में।

आज फिर एक नेता ने पहनी श्वेत पोशाक
मैं जान गया तुम भी जानो, नक्षत्र ज्ञान
राजनीति में जितने खूनी,दुष्कर्मी, लम्पट
चमकदार चेहरें वाणी का लोच मधुरता
अपराधी है! अपराधी है! अपराधी है!

अब नेता मरने पर हर बार जश्न मनेगा
अब गंगा अवशेष-अस्थि विसर्जन रोक
दाब किसी चट्टान नीचे जाओं विस्मृत
पंडितों कर्मकांड नहीं बाँचना नेताओं के
लिख दूँगा इतिहास कर्मकाण्ड का उनकें।

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