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2 Jul 2021 · 1 min read

रे मन इधर-उधर क्यों भटके...

रे मन, इधर-उधर क्यों भटके

रे मन, इधर-उधर क्यों भटके
खाए कदम-कदम पर झटके

छोड़ दे ये धन्धे खाली के
भजन कर ले प्रभु का डटके

कोई न देता साथ किसी का
जब नैया मझधार में अटके

शामिल न हो तू भेड़चाल में
छवि अपनी बना कुछ हटके

हुआ क्या हासिल अब तक
कितनी उम्र घटी कट-कटके

बिखर जाता सब किर्च-किर्च
आईना जब मन का चटके

करना है जो अभी तू कर ले
गया वक्त न आता पलट के

भू पर टिके न छू सके गगन
क्यूँ त्रिशंकु-सा अधर में लटके

पा जाएगा धाम परम मन
बस एक नाम राम का रटके

उस असीम की लघु ‘सीमा’ तू
रह हद में अपनी सिमट के

– डॉ. सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद (उ.प्र.)

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