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29 Jun 2021 · 1 min read

बेशक नहीं पसंद वो नफरत न हम रखेंगे

बेशक नहीं पसंद वो नफरत न हम रखेंगे
बस प्यार की वफ़ा की चाहत न हम रखेंगे

गमगीन हैं फ़ज़ाएँ दहशत है खलबली है
इस बेरहम हवा से क़ुरबत न हम रखेंगे

होते रहे जो यूँ ही सब खास दूर हमसे
इक रोज़ ज़िन्दगी की हसरत न हम रखेंगे

सुनले चमकते सूरज रह लेंगे तीरगी में
तेरे उजालों से तो निस्बत न हम रखेंगे

ऐ रहनुमा हमारे ली देख रहनुमाई
तुझ पर कभी भरोसा हज़रत न हम रखेंगे

लफ़्ज़ों में ढल रहे हैं तुम देखना किताबें
अब और बोलने की जहमत न हम रखेंगे

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