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20 Mar 2022 · 1 min read

डूब गये

नदी ख्वाब की गहरी थी डूब गये
ज्येष्ठ भरी दोपहरी थी डूब गये
छाले पांव पडे और हारे
हम ख्वाबो की बोते थोड़ी दूब गये।।

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