माँ
विधा – स्वैच्छिक
दिनांक -०5/०6/२१
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तेरी सूरत से नहीं मिलती किसी की सूरत मेरी माँ
तूं भगवान का दूसरा रूप दिखता सदा मुझको माँ.
तू ममता में यशोदा सी प्यारी, खुशियाँ देती माँ ,
खुशियाँ देती हमको तू सारी बिन पुकारी पर भी माँ
रोक हर गलत काम से सीधी राह सुगम लाती माँ.
माँ शब्द बोल में इतना मीठा बन जाता अनमोल माँ
मनचाहा पकवान हमे खिलाती और गम से बचाती माँ .
दिशा देकर जीवन चलना हर राह सिखाया बढ़ाया माँ
हर मुश्किल में निर्णायक दायित्व सदा निभाया माँ.
अच्छे बुरे फर्क समझाकर हर पथ सुगम बनाया माँ
हर बात समझकर जीवन अतुलनीय मनोरम पाया माँ.
त्याग की भावना मूरत हर को देती खुशियाँ समझाकर
माँ का आचल की छांव मुस्कान ठहरा सागर सा माँ.
स्वरचित –रेखा मोहन 5/6/२१ पंजाब