Sahityapedia
Sign in
Home
Your Posts
QuoteWriter
Account
28 Mar 2024 · 1 min read

सत्य चला ....

कुछ जगा – जगा सा है,
कुछ थका – थका सा है।
सब धुआं – धुआं सा है,
बादलों में छिपे सूरज की तरह,
सत्य आज ढका – ढका सा है।
ना मैं देवालय में,
ना मैं न्यायालय में,
ना मैं मदिरालय में।
ना मैं योगी के वचनों में,
ना मैं दानी के दान में।
ना मैं व्यापारी के व्यापार में,
ना मैं दादा – दादी की कहानियों में।
बंट गया मैं कई हिस्सों में,
दब गया मैं तथ्यों में।
हट गया मैं किताबों से,
टूट गया मैं टुकड़ों में।
यह तेरा सत्य,
यह मेरा सत्य,
यह उसका सत्य।
उंगलियां उठ रही हैं कि सत्य यहां है,
पर सत्य तो यह है कि,
सत्य चला अपनी तलाश में।
मैं चला अपनी तलाश में।

Loading...