बरसात
बरसात का भी अपना एक अलग ही मज़ा है
मगर बे-मौसम हो जाए तो समझो की खफ़ा है ।
कहीं कोई खुशी मनाता,कोई हो जाता है दुखी
किसी के लिए मौज तो किसी के लिए सज़ा है ।
ये जो मौसम का मिज़ाज बदलता रहता है यहाँ
यही साबित करता है कि उपर जरूर खुदा है ।
किसान, खेत, खलिहान हल और बैल ही नहीं
फूल,पेंड़,नदियाँ तालाब,सूरज की इसमे रज़ा है।
ठंडी हवाएं,शोर मचाती हूई घटाएँ,टपकती बुंदे
और घने काले बादल धरती पे बेहतर फिज़ा है।
-अजय प्रसाद