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12 Mar 2021 · 1 min read

मेरे ख़्वाब

मैंने जो ख़्वाब खुली आँखों से, दिन के उजाले में देखे ।
शाम होते होते, रात के अंधेरे में खो गए ।।

जो ख़्वाब मैंने, बंद आँखों से गहरी रात को देखे ।
सूरज निकलते ही, गर्मी से जलकर खाक हो गए ।।

मेहनत करते हुए जो ख़्वाब मैंने मैदान में देखे ।
कामयाब हुए और सब मेरे अपने हो गए ।।

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