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3 Mar 2021 · 1 min read

तेरी चाहत अगर नहीं होती (गज़ल)

तेरी चाहत अगर नहीं होती
बे-ख़ुदी हमसफ़र नहीं होती

फ़िक्र-ए-परवाज़ अगर नहीं होती
ख़्वाहिश-ए-बाल-ओ-पर नहीं होती

ज़िंदगी को गले लगाते हम
ख़ूबसूरत अगर नहीं होती

डूब जाती हैं कश्तियाँ कितनी
साहिलों को ख़बर नहीं होती

चाक दामन न कीजिए जब तक
आशिक़ी मो’तबर नहीं होती

हम भी मसनद नशीन हो जाते
बे-नियाज़ी अगर नहीं होती

आजिज़ी, फ़िक्र, आगही, तहज़ीब
ऐसे-वैसों के घर नहीं होती

ये हवा भी कभी-कभी ‘ख़ालिद’
हामी-ए-बाल-ओ-पर नहीं होती

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