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15 Feb 2021 · 1 min read

देशप्रेम का गाते हैं वो गीत (व्यंग्य)

देशप्रेम का गाते हैं वो गीत
(व्यंग्य)

देशप्रेम का गाते हैं वो गीत
केवल पैसे से है उनको प्रीत

देते हैं नारा भाईचारे का
जनता को बना देते हैं बेचारे सा

बड़े – बड़े वादों में ये मशगूल
जनता को बेवकूफ बनाना इनका शगल

घोटालों से रहा इनका नाता
कोई भी शरीफ व्यक्ति इन्हें नहीं भाता

इनकी चालों का है अजब मायाजाल
कुर्सी पाते ही हो जाते हैं निहाल

इनका अपना कोई धर्म नहीं
भाता इनको पराया धर्म नहीं

राष्ट्रवाद का लगाते हैं ये नारा
देशप्रेम से इनका नहीं कोई नाता

इन्हें रहती है केवल अपनी चिंता
तैयार करते है ये अपने दुश्मनों की चिता

इन्हें अपनी राजनीतिक रोटियाँ सकने से है मतलब
इन्हें जनता की परेशानियों से क्या मतलब

लूटते हैं देश को , जनता को करते हैं गुमराह
हर – पल , हर – क्षण करते हैं ये गुनाह

ये कैसी राजनीति की माया है
जिसे बेचारा वोटर समझ नहीं पाया है

वोटर जिस दिन कूटिल राजनीति का सत्य समझ जाएगा
अपने वोट से गजब का भूचाल लाएगा

रह जायेगी नेताओं की हर चाल धरी
न रहेंगे नेता और न रहेगी उनकी नेतागिरी

देश में वोटर का परचम लहराएगा
देश विकास की राह पर आ जाएगा

निपट जायेंगे सारे अधूरे काम
दुनिया में होगा हमारे देश का नाम

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