*”कशमकश”*
“कशमकश”
जीवन के इस कशमकश में ,वक्त न जाने कहां गुम हो जाता।
भागमभाग आपाधापी के चक्कर में, कौन कहां कैसे बिछुड़ जाता।
दो पल वक्त गुजारने के लिए ,उन हसीन लम्हों को निहारता।
वो गुजरा हुआ जमाना ,बदल गया आने वाले पलों को तलाशता।
गुजरा हुआ जमाना फिर से आये न आये ,जीवन यूँ ही गुजरता रहता।
कोई जरा दो घड़ी पास आके बैठ जाए,
कुछ अपनी सुनाता कुछ हमारी सुनता जाता।
सुनी अनसुनी कर अनकही अनदेखी ,अजनबी सा बन चलता जाता।
मोहमाया के कर्म बंधन में बंधे हुए,अदभुत लीलाएं रचा अभिनय करता रहता।
जीवन चक्र के चक्कर में फंसकर,
अपनी अलग छबि पहचान बनाता।
तेरा मेरा अपना पराया के फेर में,काम क्रोध मद लोभ में ही उलझकर रह जाता।
धरती अंबर जल प्रकृति के स्वछंद हवाओं में, सब कुछ यही पे धरा ही रह जाता।
*कशमकश में यूँ ही हंसते खेलते ,सुखद जीवन बिताते मंजिल तय कर आगे बढ़ते जाता।
शशिकला व्यास✍️