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21 Nov 2020 · 1 min read

सुबह का सूरज

गांव में आज भी घर के आहते से ड्योढ़ी से या गली के दायिनी छोर से उसे साफ-साफ देखा जा सकता है। सुबह से शाम तक जाने कितनी मर्तवा उसे देखा जाता है कभी सुर्ख तो कभी ..!ख़ैर यह सब गांव में ही देखा जा सकता है चूंकि शहरी जीवन में सुबह के उगते सूरज को देखना सबके नसीब में कहां फिर लंबी-लंबी इमारतों में बने छोटे-मोटे दरबे जहां जीवन तो जैसे तैसे जीया जा सकता है पर सुर्ख सूरज को नहीं देखा जा सकता।अब जब रात को लोग उल्लुओं की तरह जागते हैं शायद दो बजे तक तो फिर अच्छी सुबह कहां से नसीब हो।दिन भर ऊंघते रहना या मोबाइल में स्वयं को व्यस्त रखना बस यही दिनचर्या है और आऊटपुट के नाम पर ठेंगा!!
मनोज शर्मा

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