आज़ाद गज़ल
अपनी महबूबा को मुश्किल में डाल रहा हूँ
उसकी मोबाईल आजकल खंगाल रहा हूँ ।
क्या पता कि कुछ पता चल जाए मुझे यारों
क्यों मैं उसकी नज़रों में अब जंजाल रहा हूँ।
उसकी गली के कुत्ते भी मुझ पर भौंकते हैं
कभी जिस गली में जाकर मालामाल रहा हूँ।
जिसके निगाहें करम से था मैं बेहद अमीर
फिर अब किस वज़ह से हो मैं कंगाल रहा हूँ।
बेड़ा गर्क हो कम्बखत नये दौर में इश्क़ का
था कभी हठ्ठा क्ठ्ठा अब तो बस कंकाल रहा हूँ
-अजय प्रसाद