आज़ाद गज़ल
हूँ मैं तुलसी, कबीर, निराला या पंत नहीं
मीर,मोमिन ,गालिब दाग या दुष्यंत नही।
कहता हूँ गज़लें बेवाक हर मुद्दे पर बेबहर
शायर तो मै हूँ ,मगर मशहूर अत्यंत नही ।
कब्र,चिता,शमशानओअर्थी,हमसे कहते हैं
इस धरा पर रहा है जिंदा कोई अनंत नही ।
मौसम,मिज़ाज,वक़्त और हालात ,सुन यार
रह सकता है बुरा मगर जीवन पर्यन्त नही ।
बचपन से ही जो उठाते है बोझ जवानी का
पतझड़ उनके होतें हैं कदरदान,बसंत नही ।
जान गई है किसी मजदूर की ईंट ढोते- ढोते
न मीडिया ,न बहस,मुद्दा था ही ज्वलंत नही ।
-अजय प्रसाद