तेरा गम
मैं चाहूं तो भी शायद उन लफ़्ज़ों को ना लिख पाऊं जिने पढ़कर तुम जान जाओ मुझे कितनी मोहब्बत है तुमसे क्योंकि अपनों की कमी अपनों से दूर होने के बाद ही खलती है।
मैं चाहूं तो भी शायद उन लफ़्ज़ों को ना लिख पाऊं जिने पढ़कर तुम जान जाओ मुझे कितनी मोहब्बत है तुमसे क्योंकि अपनों की कमी अपनों से दूर होने के बाद ही खलती है।