आज़ाद गज़ल
तज़्किरा =ज़िक्र
सुनकर मेरी बातें देखिए उनको गुस्सा आ गया
शायद उनके ही करतूतों का तज़किरा आ गया ।
दो दिनों तक तफतीश करके ही खामोश हो गए
लगता है थाने में आज रिश्वत का हिस्सा आ गया ।
जो मुस्किलें थी वो वहीं की वहीं रह गई महफूज़
फ़िर लोगों के लिए वोट देने का मसला आ गया ।
वही हुजूम ,वही जुलूस,वही वादों की खुमारी है
वही जुमले,वही बातें,वही झूठा फरिश्ता आ गया।
न इमानदारी की कद्र है न मजलूमों की ही फिक्र
लगता है इन्सानों के लिए अब वक्त बुरा आ गया ।
– अजय प्रसाद