आज़ाद गज़ल
‘वो’ मुझको इमोशनली ब्लैक मेल करती है
आशिक़ी के ट्रेन को पटरी से डी रेल करती है ।
लाख पढ़ता हूँ मैं उसकी आँखों की किताब
इम्तिहाँ-ए-इश्क़ में अक़सर फ़ेल करती है ।
सारे नुस्खे मेरे धरे के धरे रह जाते हैं दोस्तों
जब भी मिलती है,कोल्हू का बैल करती है ।
लिखता तो मैं हूँ गज़लें उसकी तारीफ़ में
वो उन्हें अपने नाम के साथ सेल करती है ।
मैनें भी अजय तय कर है लिया अब से
खेलुंगा उससे मैं भी जैसे वो खेल करती है।
-अजय प्रसाद