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9 Jun 2020 · 1 min read

सफाई कामगारों के हक और अधिकारों की दास्तां को बयां करती हुई कविता 'आखिर कब तक'

आखिर कब तक
करते रहोगे अमानवीय काम
ढोते रहोगे मलमूत्र
मरते रहोगे सीवरों में
निकालते रहोगे गंदी नालियाँ
ढोते रहोगे लाशें

आखिर कब तक
सहोगे ये जुल्म
कब तक रहोगे
खामोश ?

सुनो सफाईकर्मियों !
अब बजा दो
बिगुल
इन गंदे कामों के
खिलाफ,
हिला दो चूल
उन ‘दिव्य सुख’
बताने वालों की,
तोड़ दो
सारे बंधन
जो-
बाधक बनते है,
तुम्हारी तरक्की के
रास्तों में।

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