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11 May 2020 · 2 min read

उपहार

“हैलो मम्मी। हैप्पी मदर्स डे माँ!”
“सच आपकी बहुत याद आ रही है। आज तो आपको हमारे साथ होना था आपको उपहार भी तो देना था। है न राजीव।”
फोन पर अपनी माँ से बात कर चहकती हुई अनुपमा बोली।
“आ जाओ न यहीँ। डिनर साथ ही करेंगे।”

बेटी पीहू केक लेकर अपनी माँ अनुपमा की प्रतीक्षा में पुकार रही थी…
“माॅम! हरी अप। फोन – वोन सब बाद में।” पहले सेलिब्रेट तो करें। आओ न। ”
केक काटकर पहले मम्मी को खिलाया और फिर जैसे ही पापा को खिलाना चाहा कि उनका मोबाइल बज उठा।
“सहारा “वृद्धाश्रम का नंबर था। राजीव विचलित हो गये–“हाँ जी ! राजीव तिवारी बोल रहा हूँ। जी ठीक है। अभी पहुंचता हूँ। ”
” लो हो गया रंग में भंग। ”
” बच्ची मदर्स डे मना रही है उसकी फिक्र नहीं। अपनी माँ की पड़ी है इन्हें तो। ”
” डुकरिया को मदर्स डे मनवाना होगा, सो बुलावा आया है। ”
राजीव ने गुस्से भरी नज़रों से मात्र देखा ही अनुपमा की तरफ। कुछ भी बोलना ओखली में सिर डालने जैसा था। अनुपमा को माँ का साथ कदापि गवारा न था।

“माॅम चुप भी करिए” पीहू माँ पर नाराज होकर पापा से बोली-“पापा क्या बात है.? ”

” बेटा मैं ज़रा सहारा वृद्धाश्रम होकर आता हूँ दादी के पास। तबियत ठीक नहीं उनकी” राजीव बोले।
” श्योर पापा। मेरी तरफ से भी दादी माँ को हैप्पी मदर्स डे कहिएगा। ”
वहाँ पहुँचने पर…” आज मदर्स डे पर सुबह से आपकी प्रतीक्षा थी उन्हें। हमने फोन पर इसलिए नहीं बताया कि कहीं आपको सदमा न लगे ”
” तबियत नासाज़ थी फिर भी बैठकर आपको नाम पत्र लिखा।”
” कह रही थीं मुझसे राजीव न मिल पाए तो यह पत्र उसे दे देना और ये कुछ एफ डी हैं जिनके नंबर भी उन्होंने लिखे हैं।”
“आधे घंटे पहले ही मांजी ने अंतिम सांस ली।”
राजीव माँ के पार्थिव शरीर से लिपट कर सुबक उठे।
” प्यारे बेटू सदा खुश रहना। मैं तुझसे कभी नाराज़ नहीं थी बेटा। भला अपने हृदय के टुकड़े से भी कोई रूठ सकता है। बेटा ये पांच लाख की एफ डी में तुझे नामिनी बना कर जा रही हूँ। कैश करवा लेना। एक अंतिम इच्छा है। इसका एक चौथाई भाग इसी आश्रम में दान दे देना। बुजुर्गों के लिए तेरी तरफ से मदद होगी बेटा।पुण्य मिलता है। ”
“मैं अब जल्द ही जाऊंगी। तेरे पापा का बुलावा आ रहा है मुझे ।”
——यह था पत्र का मजमून।
कितने अरमान थे राजीव के कि माँ को सदा साथ रखूँगा…
दो घंटे में सारी औपचारिकताएं पूर्ण करने के बाद राजीव उन्हें घर लेकर आए।
पत्नी अनुपमा लज्जित से सिर झुकाए खड़ी थी।
कैसी विडम्बना है “उस माँ का पार्थिव शरीर मातृदिवस के दिन घर लाया हूँ जो एक दिन जन्म देकर मुझे घर लाई थीं। “सोच रहे थे राजीव। उसी क्षण पांच लाख रुपये की समस्त धनराशि ही आश्रम में दान देने की घोषणा कर दी।
“तेरा तुझको अर्पण माँ”
“यही है अश्रु पूरित मातृ दिवस का उपहार माँ।”माँ के चरणों में वे बुरी तरह बिलख रहे थे।

रंजना माथुर
अजमेर (राजस्थान )
मेरी स्वरचित व मौलिक रचना
©

Language: Hindi
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