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5 May 2020 · 1 min read

कविता

मैं रोज सज धजकर,
फोन लेकर बैठ जाती हूं..
और इंतजार करती हूं,
तुम्हारे Message का,

आजकल के जमाने में,
डाकिये नहीं होते,
वरना देहरी पर बैठी हुईं मिलती,
उस जमाने में वक्त बहुत लगता था,
एक खत आने में. ‌…

मेरे लिए शायद..??
जमाना अब भी नहीं बदला
ठिठक गया है,

आज भी….
वक्त बहुत लगता है..
तुम्हारा एक मैसेज आने में… “चम्पा”

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