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12 Apr 2020 · 1 min read

ग़ज़ल

है इश्क अगर तो जताना ही होगा..
दिलबर को पहले बताना ही होगा..

पसंद नापंसद की परवाह कैसी..
तोहफे को पहले छुपाना ही होगा..

धड़कन हदय की सुनाने की खातिर..
उसको गले तो लगाना होगा..

आंखों ही आंखों में हो इशारें,
ओ पगली जुल्फों को तो हटाना होगा…

छूकर तुम्हें अब है महसूस करना है..
होठों को माथे लगाना ही होगा..

ख्वाबो को रस्ता देने की खातिर..
नींदों को रातों में आना होगा..

मजा बेकरारी का लेना अगर हो..
मिलन के पलों को घटाना ही होगा.. ?”सुनीता”?

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