खफ़ा हैं
हमसे हमारे सरकार खफ़ा हैं
जाने क्यों बरखुरदार खफ़ा हैं ।
चिढ़े-चिढ़े रहते हैं वो आजकल
क्या कहें कब से यार खफ़ा हैं ।
शक उन्हें है हमारी वफाओं पे
शिकवे-गिले भी हज़ार खफ़ा हैं ।
लाख जतन कर के हार गए हम
दिल में दर्दोगम के गुबार खफ़ा हैं ।
जाँ दे कर अजय उन्हें मनाऊँगा
शायद इल्म हो के बेकार खफ़ा हैं ।
-अजय प्रसाद