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30 Dec 2019 · 1 min read

दोहा गजल

तोड़फोड़ जबरन करें ,छोड़ सहज व्यापार।
गंगा जमुनी सभ्यता, हुई तार ही तार।

शासन होगा रुष्ट अब, देखेगा जब कृत्य,
पाई पाई जेब से ,भरना होगा यार ।

काट काट कर पेट को, जोड़े धन मां बाप,
लूट लूट कर ये शहर ,कहां छुपोगे यार ।

पत्थरबाजी खूब की, वाहन डाले फूंक,
योगी जी के लठ्ठ की,किंतु देखिए धार ।

आज “प्रेम “की ही सुनो ,घर बैठो चुपचाप,
वरना कूटे जाओगे ,झेल पुलिसिया मार ।

डॉ प्रवीण कुमार श्रीवास्तव” प्रेम ”
स्वरचित मौलिक रचना

Language: Hindi
678 Views
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