दोहा गजल
तोड़फोड़ जबरन करें ,छोड़ सहज व्यापार।
गंगा जमुनी सभ्यता, हुई तार ही तार।
शासन होगा रुष्ट अब, देखेगा जब कृत्य,
पाई पाई जेब से ,भरना होगा यार ।
काट काट कर पेट को, जोड़े धन मां बाप,
लूट लूट कर ये शहर ,कहां छुपोगे यार ।
पत्थरबाजी खूब की, वाहन डाले फूंक,
योगी जी के लठ्ठ की,किंतु देखिए धार ।
आज “प्रेम “की ही सुनो ,घर बैठो चुपचाप,
वरना कूटे जाओगे ,झेल पुलिसिया मार ।
डॉ प्रवीण कुमार श्रीवास्तव” प्रेम ”
स्वरचित मौलिक रचना