दोहा मुक्तक
सैनिक सीमा पर डटे ,करें देश से प्यार ।
आल्हा गाते जोश से सारे संकट पार।
छिड़ी जंग जब बर्फ से ,सांसें अपनी थाम ,
हिम दानव के दाँँव का,जमकर हो प्रतिकार ।
गायें महिमा गीत की ,अंबर स्वर लय के साथ।
रचना रचते छंद की ,निज जीवन के नाथ ।
कहते सब कविराय हैं ,धर्म मर्म का सार ,
गीत गजल मन भा रहे, लेखन अंबर हाथ ।
डॉ प्रवीण कुमार श्रीवास्तव, सीतापुर ।
स्वरचित मौलिक रचना।