उन्वान – # बंदिश #
पापा मेरे जीवन का तेरे जीवन से मेल नहीं
तुम स्वतन्त्र स्वछन्द जीते मेल- जोल सही.
ठण्डी हवा सादगी भरा जीवन सदा ही जिया
आज हर पल बंदिश लिये रहें पाये कोल सही.
तुमको तो खुले मैदान खेलने मिले खुल के
अब क्यों हो गयें मानों ज्यों तोल मोल सही.
सौ में सौ अंक पाना अपनी क़ाबलियत दिखाना
ऊँची शोहरत नाम कमाना बना कषैला गोल सही.
सिर है दुश्बारी बड़ी राहें भी संगीन घुमाऊं लिये
जहां जिधर भी जाऊँ प्रेम बनाऊँ में नम्र बोल सही.
ये मन पे रोक की बंदिश जीने नहीं देंगी कभी
“मैत्री” ले खुद मैदान में प्रतिबद्धता भर गोल सही.
स्वरचित –रेखा मोहन ९/१२/१९