रंग,,,,,,,,,,,,,,,,,,,काई जैसे
काई जैसे!
जम गये हैं रंग जीवन में काई जैसे
रोज़ बिछ जाता हूँ मै चटाई जैसे ।
ज़िन्दगी भी यारों कमाल करती है
बढ़ाती है गम हरबार महंगाई जैसे ।
खतरे में है शायद खैरियत मेरी अब
पूछतें हालचाल आजकल भाई जैसे ।
बड़े मजे में है मुश्किलातें अवाम की
रहते हैं मसले साथ घर जमाई जैसे ।
खर्च रहा हूँ उसुलों को मै मजबूरी में
लूट रही हो मेरी गाढ़ी कमाई जैसे
-अजय प्रसाद