मुक्तक
” नश्तर हैं ये सिर्फ ज़ुबाँ के वार नही तलवारों के,
हाल कहां मालूम किसी को सैनिक के परिवारों के
रीत यही है हर युग की ही नाम बड़ों का होता है,
जान गवाएँ लड़कर फौजें नाम सियासतदारों के “
” नश्तर हैं ये सिर्फ ज़ुबाँ के वार नही तलवारों के,
हाल कहां मालूम किसी को सैनिक के परिवारों के
रीत यही है हर युग की ही नाम बड़ों का होता है,
जान गवाएँ लड़कर फौजें नाम सियासतदारों के “