मुक्तक
“उठाया जब कलम हमने दबे जज़्बात लिख डाले,
गुज़रते बेबसी मे जो वही हालात लिख डाले,
बहुत हैं दूर खुशियों के ठिकानों मुफलिसी मे अब,
तलब, आँसू, वो बैचेनी के सब हालात लिख डाले”
“उठाया जब कलम हमने दबे जज़्बात लिख डाले,
गुज़रते बेबसी मे जो वही हालात लिख डाले,
बहुत हैं दूर खुशियों के ठिकानों मुफलिसी मे अब,
तलब, आँसू, वो बैचेनी के सब हालात लिख डाले”