मुक्तक
” सलीका बाँस को बजने का जीवन भर नहीं होता,
बिना होठों के वंशी का भी मीठा स्वर नहीं होता,
परिंदे वो ही जा पाते हैं ऊँचे आसमानों तक,
जिन्हें सूरज से जलने का तनिक भी डर नहीं होता “
” सलीका बाँस को बजने का जीवन भर नहीं होता,
बिना होठों के वंशी का भी मीठा स्वर नहीं होता,
परिंदे वो ही जा पाते हैं ऊँचे आसमानों तक,
जिन्हें सूरज से जलने का तनिक भी डर नहीं होता “