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3 Jan 2019 · 1 min read

दोहे

दोहे
फटती नहीं बिवाइयाँ, जब तक अपने पैर।
ज्ञात नहीं होता कभी,क्या दुख सहता गैर।।1

ओखल के अंदर रहें ,और चोट से दूर।
जिनको आती ये कला,उन पर हमें गुरूर।।2

छोटे गलती-चूक पर ,सुनें सदा फटकार।
बड़े करें तो सब कहें,कर लो भूल सुधार।।3

जब भी टूटा काँच तो ,आया सिर इल्जाम।
किया जगत ने व्यर्थ में,पत्थर को बदनाम।।4

धुँधला सा पथ हो गया,जब भी उठा गुबार।
किया उसी ने पर हमें ,लड़ने को तैयार।।5

उजड़ गया है स्वार्थ में, संबंधों का गाँव।
ढूँढे से मिलती नहीं, अपनेपन की छाँव।।6
डाॅ बिपिन पाण्डेय

Language: Hindi
230 Views
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