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5 Aug 2024 · 1 min read

शीर्षक -ओ मन मोहन!

ओ मन मोहन
———
मैं तुझसे प्रीत लगा बैठी,
यह मेरी समझ नहीं आया।
वंशी की धुन पर तुमने,
मुझको बहुत रिझाया।
मैं तुझसे नेह लगा बैठी !

पल-पल तेरी याद सताती,
सपनों में भी तू आया।
मैं दीवानी हो गई तेरी ,
मुझको आज समझ आया।
मैं तुझसे लगन लगा बैठी !

वंशी की धुन पर मुझे रिझाया,
कौन सा जादू किया कान्हा।
रातों को चैन नहीं मुझको,
सुध-बुध मैं खो बैठी कान्हा।
मैं तुझसे प्रीत लगा बैठी !

ओ मन मोहन तेरे जैसा,
कोई नहीं इस दुनिया में।
तेरे ही रंग में रंग गई हूंँ,
बलिहारी तेरे चरणों में।
मैं तेरी दासी बन बैठी –
मैं तुझसे प्रीत लगा बैठी !

सुषमा सिंह*उर्मि,,
कानपुर

Language: Hindi
63 Views
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