Sahityapedia
Sign in
Home
Your Posts
QuoteWriter
Account
5 Dec 2018 · 1 min read

और बैचेन हूँ मैं सता कर उसे

ग़ज़ल –
बह्र- (मुतदारिक मुसम्मन सालिम)

और बैचेन हूँ मैं सता कर उसे ।
मैं भी रोया बहुत हूँ रुला कर उसे ।।

मैं बदलता रहा करवटें रात भर।
सो न पाया हूँ मैं भी जगा कर उसे।।

तोहमतें तो लगा दी हैं मैने मगर।
गिर गया हूँ नज़र से गिरा कर उसे।।

रंज़ो- ग़म दूर उसके हुए हैं सभी ।
मैने देखा है जब मुस्करा कर उसे।।

सबको लगता चराग़ इक अकेला जला।
साथ मैं भी जला हूँ जला कर उसे।।

याद उसकी सताती है हरदम मुझे।
मैं भी तड़पाउंगा याद आ कर उसे।।

है “अनीश”अब यक़ीं बेवफ़ा तो नहीं।
देखा है बारहा आज़्मा कर उसे।।
—-अनीश शाह

Loading...