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11 Nov 2018 · 1 min read

आज भी माँ क़ब्र से लोरी सुनाती है मुझे

सो रही है प्यार से मिट्टी की चादर ओढ़कर
आज भी माँ क़ब्र से लोरी सुनाती है मुझे

दूर अंबर में बसेरा है मेरी माँ का मगर
आज भी वो दिल के कोने में बसाती है मुझे

भूख से बेज़ार होकर जब पुकारा है उसे
भीगी पलकों से निहारे थपथपाती है मुझे

जब कभी तन्हा हुआ ये दिल ज़माने से ख़फ़ा
बनके झौंका याद का वो गुदगुदाती है मुझे

जब कभी घायल हुआ और दर्द से चीख़ा हूँ मैं
चूमकर माथे को मरहम वो लगाती है मुझे

जब कभी मायूस करती हैं मुझे नाकामियाँ
ख़्वाब में आकर वही ढाढस बंधाती है मुझे

जब कभी आते हैं तूफ़ान घेरने दिल को मेरे
लड़ती तूफ़ानों से आँचल में छुपाती है मुझे

बनके परछाई वो हर पल साथ चलती है मेरे
अब जुदा करके दिखा क़िस्मत मेरी माँ से मुझे

नीतू ठाकुर
प्रतापगढ़ (उत्तरप्रदेश)

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