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4 Nov 2018 · 2 min read

माँ

माँ
** अरुण प्रदीप शर्मा
गर्मी की तपती धूप में
बरगद सी छाया देती
बादल जो उमड़ घुमड़ डराए
छाती से है तू लिपटाती
सर्दी की ठिठुरन में तू माँ
बगल में अपनी दुबकाती
भर पेट खिलाकर बच्चों को
भूखी प्यासी भी सो जाती
कितनी भी नाकारा औलाद
करती उनके गुण अथक बयां
ईश्वर की भी तो मूरत ना
तुझसे सुंदर हो सकती माँ
©® Arun sharma
##

यह मेरी स्वरचित एवं मौलिक रचना है जिसको प्रकाशित करने का कॉपीराइट मेरे पास है और मैं स्वेच्छा से इस रचना को साहित्यपीडिया की इस प्रतियोगिता में सम्मलित कर रहा/रही हूँ।मैं साहित्यपीडिया को अपने संग्रह में इसे प्रकाशित करने का अधिकार प्रदान करता/करती हूँ|मैं इस प्रतियोगिता के सभी नियम एवं शर्तों से पूरी तरह सहमत हूँ। अगर मेरे द्वारा किसी नियम का उल्लंघन होता है, तो उसकी पूरी जिम्मेदारी सिर्फ मेरी होगी।साहित्यपीडिया के काव्य संग्रह में अपनी इस रचना के प्रकाशन के लिए मैं साहित्यपीडिया से किसी भी तरह के मानदेय या भेंट की पुस्तक प्रति का/की अधिकारी नहीं हूँ और न ही मैं इस प्रकार का कोई दावा करूँगा/करुँगी|अगर मेरे द्वारा दी गयी कोई भी सूचना ग़लत निकलती है या मेरी रचना किसी के कॉपीराइट का उल्लंघन करती है तो इसकी पूरी ज़िम्मेदारी सिर्फ और सिर्फ मेरी है; साहित्यपीडिया का इसमें कोई दायित्व नहीं होगा|मैं समझता/समझती हूँ कि अगर मेरी रचना साहित्यपीडिया के नियमों के अनुसार नहीं हुई तो उसे इस प्रतियोगिता एवं काव्य संग्रह में शामिल नहीं किया जायेगा; रचना के प्रकाशन को लेकर साहित्यपीडिया टीम का निर्णय ही अंतिम होगा और मुझे वह निर्णय स्वीकार होगा|

अरुण शर्मा
9869030894
arun.400081@gmail.com

5 Likes · 36 Comments · 695 Views

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