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29 Oct 2018 · 2 min read

अब दिवाली के पुराने दिन याद आते है --आर के रस्तोगी

अब दिवाली के पुराने दिन याद आते है
जब दीवारों को चूने से पुतवाते थे
चूने को बड़े ड्रमों में घुलवाते थे
उसमे थोडा सा नील डलवाते थे
सीडी पड़ोसी से मांग कर लाते थे
अगर पुताई वाला नहीं आता तो
खुद ही सीडी पर चढ़ जाते थे
अब दिवाली के पुराने दिन याद आते है

पहले मकान कच्चे होते थे
पर दीवारे पक्की होती थी
अब मकान पक्के होते है
पर दिवारे कच्ची होती है
पहले रिश्ते पक्के होते थे
अब रिश्ते जल्दी ढह जाते है
दिवाली के पुराने दिन याद आते है

पहले मकान हर साल पुतवाते थे
महीनो साफ सफाई में लग जाते थे
अब मकान को पेंटर से पेंट कराते है
वह भी पांच-छ:साल में कराते है
अब पेंट में जितने खर्च आते है
उतने में पहले मकान बन जाते थे
अब दिवाली के पुराने दिन याद आते है

पहले छतो पर झालर लटकाते थे
रंग-बिरंगे छोटे बल्ब लगाते थे
अब चाइना मेड झालर लगाते है
वो जल्दी ही फूस हो जाते है
पहले बाजार से कंडील लाते थे
उसको मुख्य दरवाजे पर लगाते थे
अब ये कंडील कम मिल पाते है
अब दिवाली के पुराने दिन याद आते है

पहले पटाखे खूब छुडाते थे
फुलझड़ियाँ भी खूब लाते थे
दूर थोक की दूकान पर जाते थे
मुर्गा ब्रांड पटाखे खूब लाते थे
अब तो चाइना मेड पटाखे आते है
वो हमारे व्यापर में आग लगाते है
अब दिवाली के पुराने दिन याद आते हे

पहले धनतेरस को बाज़ार जाते थे
कटोरदान या बर्तन खरीद लाते थे
पहले मिट्टी के लक्ष्मी गणेश लाते थे
वही दिवाली के दिन पूजे जाते थे
अब मेटल के लक्ष्मी गणेश लाते है
अब दिवाली के पुराने दिन आते है

पहले छोटी बड़ी दिवाली मनाते थे
खुशियों के मिट्टी के दीये जलाते थे
उनको मुडेरो पर जाकर सजाते थे
चार पांच दिन के बाद उठकर लाते थे
अब तो केवल खाना पूर्ति कर पाते है
अब दिवाली के पुराने दिन याद आते है

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