लोगो को जिंदा रहने के लिए हर पल सोचना पड़ता है जिस दिन सोचने
रंग बिरंगे फूलों से ज़िंदगी सजाई गई है,
आजकल अकेले में बैठकर रोना पड़ रहा है
श्रीराम किसको चाहिए..?
सोलंकी प्रशांत (An Explorer Of Life)
*श्रग्विणी/ श्रृंगारिणी/लक्ष्मीधरा/कामिनी मोहन* -- (द्वादशाक
रामनाथ साहू 'ननकी' (छ.ग.)
मैने सूरज की किरणों को कुछ देर के लिये रोका है ।
जीवन के सारे सुख से मैं वंचित हूँ,
* इस तरह महॅंगाई को काबू में लाना चाहिए【हिंदी गजल/ गीति
तेरी तस्वीर को लफ़्ज़ों से संवारा मैंने ।
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ओकरा गेलाक बाद हँसैके बाहाना चलि जाइ छै
गजेन्द्र गजुर ( Gajendra Gajur )
हे दिनकर - दीपक नीलपदम्
दीपक नील पदम् { Deepak Kumar Srivastava "Neel Padam" }