कोहरा
कोहरा/लघुकथा
रमेश ‘आचार्य’
शाम के वक्त आसमान में हल्का कोहरा था। आज वह खुशी से फूला नहीं समा रहा था। कल नए साल का पहला दिन उसकी नौकरी का भी पहला दिन होने वाला था। वह मन नही मन भगवान का शुक्रिया अदा कर रहा था। गांव से आए अभी दो ही महीने हुए थे कि उसे एक प्राइवेट फर्म में सुपरवाइजर की नौकरी मिल गई। ऐसा नसीब भला महानगर में कितनों का होता है। उसने संकल्प किया कि वह पूरी ईमानदारी और मेहनत से काम करेगा। वह बस स्टैंड के कोने में खड़ा होकर अपनी बस का इन्तजार कर रहा था। अचानक उसे दूसरी ओर से किसी लड़की के रोने की आवाज सुनाई दी। उसने पास जाकर देखा कि तीन लड़के एक लड़की पर अश्लील फब्तियां कस रहे थे। बीच-बीच में वे उसके शरीर को भी छू रहे थे। एक लड़के ने उसका हाथ पकड़कर अपनी ओर खींचा और कहा-‘‘ चलो डाार्लिंग, आज नया साल हमारे साथ मनाओ।’’ वह उनका विरोध कर रही थी लेकिन वहां खड़े लोगों में से कोई उसकी मदद के लिए न आया। सभी अपनी-अपनी दुनिया में गुम मोबाइल पर बतिया रहे थे या कानों में लीड लगाए न जाने क्या सुन रहे थे ।
वह उन लड़कों के पास गया और उनसे लड़की को तंग न करने की विनती करने लगा। तभी एक लड़के ने उसे एक चाटा मारा और हंसते हुए बोला-‘‘तेरी क्या बहन लगती है……चल पलटी हो जा, नही तो तेरी सारी हीरोपंती यहीं निकाल दूंगा।’’ उसका किसानी खून खौल उठा और उसने उस लड़के के मुंह पर एक ताकतवर घूंसा मारा। वह लड़का ‘मारो साले को’ कहता हुआ जमीन पर गिर पड़ा। अब वह दोनों लड़कों से भिड़ गया और उन्हें भी धूल चटाने लगा; लेकिन तभी न जाने कहां से उनके तीन साथी और आ गए। वे सभी उस अकेले पर लात-मुक्कों की बरसात करने लगे। उसे अधमरा कर वे लड़के रफूचक्कर हो गए। आसपास खड़े लोग सब जानते हुए भी मूकदर्शक बने तमाशा देखते रहे। भीड़ में से आवाजें आ रही थीं-‘‘ पराई आग में कूदने पर हाथ ही जलते हैं। बेचारे का नया साल खराब हो गया। सबको अपने काम से काम रखना चाहिए।’’
वह लड़की मोबाइल पर किसी का नंबर मिला रही थी। तभी एक कार उसके पास आकर रुकी और उसमें से एक युवक बाहर निकलकर गुस्से में बोला-‘‘तुम मेरी काॅल रिसीव क्यों नहीं कर रही थी़?’’
वह बोली,‘‘साॅरी यार, यहां मेरे साथ ड्रामा हो गया था—’’
‘‘अब अपनी स्टोरी मत सुनाओ जल्दी बैठों, कहीं न्यू ईयर पार्टी में लेट न हो जाए।’’ लड़के ने लड़की के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा। वे दोनों कार में बैठकर हवा हो गए। वह लड़का जटायु की भांति जमीन पर बैठा अपने शरीर से बहते हुए खून को रूमाल से पोंछ रहा था। आसपास में कोहरा और घना होता जा रहा था।
-लेखक परिचय-
पताः सी-1/79, केशव पुरम, दिल्ली-110035
स्ंप्रतिः स्वतंत्र लेखन। हंस, परिंदे, लोक गंगा, सोच विचार, अक्षर पर्व आदि राष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाओं में कुछेक रचनाएं प्रकाशित।
मोबाइल- 8799703049
ईमेल- aharyasharma2014@gmail.com
नोटः उपरोक्त कोहरा रचना मौलिक है।