II शब्दों की सीमा II
शब्दों की है अपनी सीमा ,कुछ कह ना पाऊंगा l
समझ सको तो बस इतना,अब चल ना पाऊंगा ll
आदर्शों का बोझ लिए,आगे बढ़ना मुश्किल है l
भ्रष्टाचार की सीढ़ी चढ़ना भी, सीख ना पाऊंगा ll
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अपने दुकड़े जोड़ रहा खुद टूटे-फूटे हाथों से l
बस मलहम सरकार लगाते चिकनी चुपड़ी बातों से ll
कहां निकलता कहां डूबता सूरज यह मालूम नहीं l
कितनी ही सरकारें बदली इस जनता की लातों से ll
संजय सिंह सलिल
प्रतापगढ़ उत्तर प्रदेश