II यादें सता रही है II
यादें सता रही है गुजरे हुए दिनों की l
जो साथ में गुजारे उन कीमती पलों की ll
क्या बात मैं बताऊं कहती जो ए हवाएं l
सब बात अब खुलेगी विन भेजि चिट्ठियों की ll
दो पल के ही लिए पर तुम रुक के देख लेना l
तब सामने हि होगी पहचान साथियों की ll
करता तेरे हवाले मैं कैसे आन मेरी l
होती यही तो दौलत हम जैसे शायरों की ll
मानो जो बात मेरी मुझसा कभी ना बनना l
बुत को हि पूजते हैं फितरत ए काफिरो की ll
फिर से ख्याल आया तन्हाई में जो तेरा l
चादर पे सिलवटें अब शामत ए करवटों की ll
गुजरे भि अब तो कैसे जीवन “सलिल” हमारा l
मन भागने को आतुर बंदिश ए बेड़ियों की ll
संजय सिंह “सलिल”
प्रतापगढ़ ,उत्तर प्रदेश l