II…मिट्टी की खुशबू…II
किताबें धर्मों की जो भी वो नफरत दे नहीं सकती l
वतन की मिट्टी की खुशबू खिलाफत दे नहीं सकती ll
कभी हंसना कभी रोना कभी मिलना बिछड़ना है l
जो दे सकती मोहब्बत है वो नफरत दे नहीं सकती ll
चलो एक साथ चलते हैं अमन की राह पर दोनों l
ए गुलशन साद है हमसे बगावत दे नहीं सकती ll
समझ में कुछ नहीं आता मेरे मोमिन या मौला को l
दुआ तकरार में जाकर के बरकत दे नहीं सकती ll
चलो मिलजुल के हम दोनो रहे एक छत के ही नीचे l
ए मन में जो दीवारें घर कि सूरत दे नहीं सकती ll
गिले शिकवे सभी भूलो ‘सलिल’ अपना के तो देखो l
दिलों को जोड़ने का फन सियासत दे नहीं सकती ll
संजय सिंह ‘सलिल’
प्रतापगढ़,उत्तर प्रदेश I