II… गई जब रात सारी….II
जो वादा था किया तुमने वो पूरा क्यों नहीं होता l
गई जब रात सारी तो सवेरा क्यों नहीं होता ll
हमें आती नहीं कोई इबारत खौफ पैदा हो l
तुम्हारे घर मोहब्बत का ठिकाना क्यों नहीं होता ll
वही दो हाथ एक दिल और दो चश्मे चिरागा है l
बसे जो राम रहमन का हि आना क्यों नहीं होता ll
कभी बाहर भी निकलो तो जरा अपने दयारों से l
खुला है आसमा देखो उजाला क्यों नहीं होता ll
नहीं थे साथ फिर भी हम यहां तक साथ में आए l
लहू का है अगर रिश्ता तो पूरा क्यों नहीं होता ll
‘सलिल’ सब भूल कर हम तुम नई दुनिया बसाते हैं l
निगाहें बन गई पत्थर इशारा क्यों नहीं होता ll
संजय सिंह ‘सलिल’
प्रतापगढ़, उत्तर प्रदेश l