II कुछ आरजू ज्यादा न थी…II
कुछ आरजू ज्यादा न थी ए जिंदगी तुझसे मेरी l
फिर भी शिकायत कुछ नहीं ए जिंदगी तुझसे मेरी ll
कुछ भी मिला ना कुछ बचा ना भीड़ में चलते रहे l
क्या बात बिगड़ी किस जगह ए जिंदगी तुझसे मेरी ll
सब ख्वाब है अब भी अधूरे हैं बची सांसे भि कम l
बात बस दो चार दिन ऐ जिंदगी तुझसे मेरी ll
अब खोल दे खिड़की कोई आने भि दे कुछ रोशनी l
कुछ तो हो पहचान भी ए जिंदगी तुझसे मेरी ll
कुछ फर्ज भी अब पूरे हो कुछ मान भी तेरा ‘सलिल’l
अब आख़िरी है आरजू ए जिंदगी तुझसे मेरी ll
संजय सिंह ‘सलिल’
प्रतापगढ़ ,उत्तर प्रदेश ll