& I lost my UPSc ka admit card
तुम्हारे विरह को किन शब्दों में लिखूं मैं,
तुम्हारे बिना भी ज़िंदा हूं ये कैसे कहूं मैं!
चलो, फिर भी एक छोटी सी कोशिश करती हूं
सटीक तो नहीं शायद, पर कुछ हाल तुमसे कहती हूं।
इतिहास की भाषा में कहूं तो
मोहनजोदड़ो की भग्नावशेष बन गई हूं मैं,
क्या थी और क्या रह गई हूं मैं!
भूगोल की भाषा में कहूं तो,
कहां किसी नदी सी स्वच्छंद बहा करती थी मैं,
कहां एक गोखुर झील बनकर ठहर गई हूं मैं!
संविधान की भाषा में कहूं तो,
कभी अनुच्छेद 32 सी चिरस्थायी हुआ करती थी मैं,
आज महज एक एक्ट सी अनिश्चित रह गई हूं मैं!
अर्थशास्त्र की भाषा में कहूं तो
कहां अपनों के लिए asset सी हुआ करती थी मैं,
आज बस एक liability सी बनकर रह गई हूं मैं!
गणित की भाषा में कहूं तो
कहां समीकरण का अंतिम परिणाम समझती थी खुद को,
कहां केवल ‘X’ का मान बनकर रह गई हूं मैं!
जीव विज्ञान की भाषा में कहूं तो,
कहां स्पाइनल कॉर्ड सी सक्रिय हुआ करती थी मैं
और कहां निमेषक झिल्ली बनकर रह गई हूं मैं!
रसायनशास्त्र की भाषा में कहूं तो
कभी अपनों के लिए Tranquilizer हुआ करती थी मैं,
और अब तो खुद के लिए भी सिरदर्द सी बन गई हूं मैं!
भौतिकी की भाषा में कहूं तो,
कहां प्रकाश की गति सी तीव्र हुआ करती थी मैं,
अपवर्तित किरण सी न जाने कहां पहुंच गई हूं मैं!
साहित्य की भाषा में कहूं तो
कहां श्रृंगार रस से ओतप्रोत हुआ करती थी मैं,
कहां विरह रस में पूरी तरह से डूब गई हूं मैं!
चाहे किसी भी भाषा में कह लो
भाव बस इतना है
कि तुम बिन मेरा सबकुछ कुछ यूं अधूरा है,
मानो वक्त के चलने पर भी ये ठहरा है,
और मैं ज़िंदा तो हूं पर जी नहीं पा रही,
विरह के दर्द का पहरा कुछ इतना गहरा है।।
-©®Shikha