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29 Jul 2021 · 7 min read

सिमरन

रोहन इन तीन चार दिनो से जितना चितिंत परेशान अनमना सा था वैसा पहले कभी नहीं दिखा| मन मे तमाम शंकाएं पता नहीं क्या हुआ तबीयत ठीक नही, जाब छोड़ दिया या और कोई बात | पता नहीं उस मासूम चेहरे से कितनी आत्मीयता हो गई थी न कभी बातचीत न कोई परिचय न कुछ खास जानकारी ही, अगर कुछ था तो बस एक लगाव अपनापन जो कि आकर्षण जैसे शब्दों से कहीं ऊँचा स्तर लिए हुए |
इधर कुछ दिनो से अचानक कभी मंदिर की सीढियां चढ़ते उतरते कभी मार्केट या रेलवे स्टेशन परिसर प्लेटफार्म मे अक्सर आमना सामना हो जाता |
रोहन ने जब से मथुरा के एक स्वयंसेवी संस्थान मे एकाउंटेंट की जाब पकड़ी ट्रेन से आते जाते अक्सर साथ का सफर वो भी पलवल से काफी दूरी होने की वजह से रोहन का ज्यादातर साप्ताहिक सफर ही होता, शनिवार की शाम को जाना सोम की सुबह फिर एक्सप्रेस पकड़ कर मथुरा वापस जाब मे आ जाना । कभी कभी बीच मे भी बुध या बृहस्पतिवार को सफर हो जाता या फिर कोई इमरजेंसी |
पहले शुरू शुरू तो गौर नहीं किया फिर एक दिन अचानक ध्यान गया कि अगले स्टापेज से एक लड़की आती है जो शायद रोजाना अप डाउन कर रही है | संयोग भी कुछ ऐसा वहीं डिब्बा डी-3 या डी-4 सीट के आसपास बैठना या फिर गलियारे में खड़े हो जाना , ट्रेन मे नहीं तो स्टेशन के बाहर आटो या फिर स्टेशन से बाहर निकलने वाली कतार में आगे पीछे या फिर कहीं आस पास |
रोहन ने इस हफ्ते लगातार 2-3 अप डाउन भी कर लिया शनिवार भी आ गया | आज रोहन ने 5:30 वाली ट्रेन से न जाने के बजाय हफ्ते मे 2-3 दिन चलने वाली गाड़ी जो कि 4:40 पर मथुरा आती है मे टिकट करा आफिस से 4 बजे ही छुट्टी ले लिया मन मे कहीं ये भी था कौन सा उसको आना है |
पर ये क्या आटो का किराया दे ही रहा था कि पीछे से आने वाले आटो से वो उतरी “वैसे ही अचानक सामने जैसे कभी ट्रेन मे न दिखी तो लंच टाइम मंदिर जाते उसका सामने सीढियों से उतरना या फिर पुजारी जी से प्रसाद लेकर मुड़ना और फिर रोहन का आँखें सुबह के सूरज की तरह देदीप्यमान हो उठती” आज दिल ने इरादा बना लिया था डिब्बे या सीट के आसपास होने पर बातचीत की पहल करना है कहाँ रहती है क्या करती क्या नाम है आदि आदि |
संयोग भी बना देखा उसकी आरक्षित सीट पर वो बैठ गई रोहन जब तक मोबाइल निकाल सीट कनफर्म करता वो उठकर खड़ी हो गई रोहन आधी सीट छोड़कर बैठ गया कुछ देर खड़े रहने के बाद वो भी बैठ गई |
मथुरा से कोसी कला तक सफर हो गया वो उतरकर चली भी गई पर रोहन कुछ बात न कर सका | शायद सोच रहा था क्या सोचेगी क्यों पूँछ रहा हूँ कही उसके दिमाग मे मेरी छवि ऐसे वैसे लड़कों की न बन जाये |
बातचीत की शुरूआत करने की तरकीब सोचते विचारते सोमवार की सुबह आ गई | पहले जहाँ घर जाने की जल्दी शनिवार का इंतजार होता था इस बार सोमवार की सुबह और ट्रेन पकड़ने की बेसब्री | ट्रेन भी आई गंतव्य तक का सफर भी हो गया पर आज वो फिर नहीं आई रोहन भारी मन के साथ उदास सा ट्रेन से उतरकर स्टेशन के बाहर खड़ी एक आटो में बैठ गया |
दो एक सवारी बैठने के बाद आटो दस कदम चलकर रुक गया आटो वाले को शायद हाथ देती भागती सवारी दिख गई हो, अगले ही पल दौड़ती हाँफती वही दो छोटी लड़कियां उम्र कोई 14-15 साल जो कि उस लड़की का इंतजार स्टेशन के बाहर किया करती | ‘ये पहले ही अक्सर साथ होने वाले आटो के सफर मे पता चल चुका था कि ये दोनों लड़कियां वहीं कहीं आसपास संगीत सीख रही है’ आटो चल दिया सवारियों की आपसी बातचीत वार्तालाप राजनीति भ्रष्टाचार चुनावी भविष्यवाणी जिससे की हम सब छोटे लंबे सफर के दौरान झेलते उलझते रहते हैं | तभी दोनों लड़कियों मे किसी एक की आवाज़ कानों में पड़ी “सिमरन दी तो इस हफ्ते आयेगीं नहीं वो बृज विकास परिषद मे चलने वाले सांस्कृतिक प्रोग्राम मे अपने संस्थान की ओर से जाने वाली प्रतिभागियों की टीम मे वृंदावन कुंभ बैठक गयीं हैं |
दिल ने सिमरन सिमरन दोहराते हुए वृंदावन मेले जो कि 12 वर्ष मे एक बार आता है जाने का प्रोग्राम बना डाला | अगले ही दिन प्रभारी महोदय को राजी कर रोहन सहकर्मियों सहित वृंदावन मेला क्षेत्र खोजते फिरते बृज विकास परिषद खालसे मे पहुंच गया शिव जी का गोपी रुप मे रास मे प्रवेश का मंचन चल रहा था बाकी साथियों को मेला घूमने की जल्दी रोहन को अपनी फिक्र रोहन के कुछ देर रुकने के आग्रह पर तू यही रुक हम मेले मे आये संतो विभिन्न संस्कृतियों की प्रदर्शनी देख कर आते हैं 3-4 घंटे का ही तो टाइम मिला फिर वहीं आफिस काम घर जिम्मेदारी ये वो तू अभी अकेला है बेटा जब चाहे छुट्टी मे आ सकता है |
सब घूमने चले गये रोहन की आँखें मंच के पात्रों तो कभी आगे की कतार मे बैठे विभिन्न संस्थाओं से आये छात्रों अध्यापक कार्यकर्ताओं के बीच तो कभी मंच से दाहिने बने आवासीय कैम्पों की तरफ सिमरन की तलाश करती रही |
कार्यक्रम भी समाप्त हो गया शाम के कोहरे के साथ लाइट की रोशनी भी तेज हो चुकी थी इधर उधर व्यस्त से परिषद के सदस्यों छात्रों कलाकारों के अलावा इक्का दुक्का दर्शनार्थी ही बैठे थे |
रोहन मंच से कैम्प की तरफ जाने वाले स्टील राड के बने गलियारे की तरफ खाली कुर्सी पर जाकर बैठ गया निगाहें कभी मंच तो कभी कैम्प कभी बाहर जाने वाले गेट की तरफ घूर रहीं थी तभी मंच से गलियारे की तरफ बनी सीढियों से हाथो मे कपड़ें लिए जो कि कुछ कुछ पात्रों वाले लग रहे थे सिमरन उतर रही थी रोहन पर नजर पड़ते ही कुछ पल के लिए कदम ठहर से गये निगाहों से कदमो का संतुलन बिगड़ गया तेजी से खटाक की आवाज से साथ वो गिरते गिरते बची रोहन उठता तब तक वो सभलते हुए सिर झुकाये गलियारे से होकर कैम्प की तरफ बढ़ गई| |
रात 10 बजे साथियों साथ रोहन वापस मथुरा आ गया पूरे हफ्ते रोहन का घर से अप डाउन होता रहा शायद बीच बीच सिमरन का वृंदावन से घर आना जाना हो |
शुक्रवार शाम की ट्रेन छूट चुकी थी तभी यात्रियों का शोर सुनाई दिया कोई कहता और तेजी से दौड़ो गाड़ी अभी तेज नहीं कोई रिस्क मत लो यात्री खिड़की दरवाज़े से झाँक रहे थे| प्लेटफार्म निकलने ही वाला था कि माजरा जानने के उद्देश्य से रोहन ने भी खिडकी से सिर निकाल लिया देखा सिमरन भागते भागते पीछे गार्ड से रिक्वेस्ट करती जा रही है गार्ड उसे दूसरी गाड़ी से आने की नसीहत दे रहा |
रोहन ने हाथ हिलाकर रुकने का इशारा कर जंजीर खींच लिया गाड़ी रुक गई गार्ड व दो आर फी एफ के जवान डिब्बे मे किसने खींचा किसने खींचा कर किसी के इशारे पर रोहन से उलझ गये बातचीत के बाद दोनो आर पी एफ जवान जो कि युवा थे उतर कर दूसरे डिब्बे मे चले गये, गार्ड साहब पूरे रौब मे आकर कानून दिखाने लगे कुछ देर बाद सिमरन जो कि पीछे वाले डिब्बे मे बैठ गई थी जाने क्या सोच आ गई आते ही गार्ड पर बरस पड़ी गार्ड भी उलझता जा रहा था स्टेशन मास्टर- जी आर पी थाना प्रभारी जो कि बात चीत से सुलझे हुए लग रहे थे ने आकर मामला शांत करा दिया |
गाड़ी चल दी सरकारी कर्मचारियों की तानाशाही असंवेदनशीलता आदि पर चर्चा छिड़ गई |
सिमरन शांत बैठी थी रोहन ने सही मौका देख टोक दिया – परसों नरसो आप वृंदावन दिखी थीं | हाँ संस्थान ने विधालय के छात्रों की टीम के साथ हम 2-3 लड़कियों को भी सास्कृतिक प्रोग्राम मे हिस्सा लेने भेजा था कहकर सिमरन चुप हो गई | रोहन ने बातचीत का सिलसिला बढ़ाने के उद्देश्य से अनजान बनते हुए पूँछ लिया ‘कितने दिनो का मेला होता है’ मेले व संस्थान के प्रोग्राम आदि की जानकारी अचानक माँ की तबीयत खराब होना और फिर एक दूसरे के परिवार जाब ट्रेन के सफर आदि जानकारी के साथ दोनो शांत हो गये | बातचीत के दौरान पता चला उसका नाम सिमरन नहीं नीरू है सिमरन नाम तो उन दोनों लडकियों मे एक ने रखा है, सिमरन एक की बड़ी बहन का नाम है दूसरी की बड़ी बहन नहीं है एक दिन परिवारिक चर्चा के बीच उसने बोल दिया – ‘दीदी आप हमारी सिमरन दी बन जाओ न’ और फिर नीरु दोनो की ही सिमरन दी हो गई। ऐसा हो भी क्यों न उससे मिलते ही इतनी आत्मियता जो हो जाती है |
कोसी कला आने वाला था कि रोहन ने फिर टोका आपका स्टेशन आने वाला है मां की तबीयत कैसी है बताना ‘सिमरन कुछ असहज सी दिख रही’ ये गौर न करते अगर आपको उचित लगे हमारे नम्बर पर मिस काल कर दीजिए कहकर रोहन अपना मोबाइल नम्बर बोल गया | सिमरन चुप शांत बैठी थी रोहन के क्या हुआ कोई प्राब्लम हो तो मत दीजिए के उत्तर मे धीमे से ‘नहीं ले लीजिए’ कहकर सिमरन पसीने से तरबतर काँपते हाँथो से मोबाइल निकाल नम्बर डायल करने लगी ऊँगलियाँ काम नहीं कर पा रही थी, रोहन ने सिमरन के हाँथो से मोबाइल ले अपना नम्बर डायल कर अब सहज हो चुकी उँगलियों को पकड़ा दिया और फिर दोनो मुस्कुरा उठे |

M.Tiwari”Ayen”

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