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24 Jul 2023 · 3 min read

*गुरु जी की मक्खनबाजी (हास्य व्यंग्य)*

गुरु जी की मक्खनबाजी (हास्य व्यंग्य)
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गुरु की मक्खनबाजी ही जीवन का सार है । जिसने गुरु को मक्खन लगा दिया , उसका बेड़ा पार और जो यह समझता रहा कि मेरा ज्ञान ही मुझे परीक्षा में सफल कराएगा ,वह मतिमंद और भ्रम में डूबा हुआ छात्र मँझधार में डूब जाता है । किनारे पर वही पहुंच पाता है जिसे गुरु की कृपा प्राप्त हो जाती है ।

प्रायः यह कृपा ट्यूशन पढ़ने से प्राप्त होती है । इस कार्य में यद्यपि छात्र को अपनी जेब ढीली करनी पड़ती है लेकिन फिर वह मंद-मंद मुस्काते हुए परीक्षा-कक्ष में परीक्षा देने के लिए जाता है और जैसी कि उसे आशा थी ट्यूशन पढ़ाने वाले गुरु जी के बताए हुए प्रश्न ही परीक्षा में आते हैं । वह निपुणता पूर्वक उनका उत्तर लिखता है और अगर कोई कमी रह भी जाती है तो कॉपी जाँचने के लिए गुरु जी के ही पास जानी है। वह अपने प्रिय शिष्य को कभी भी परीक्षा में फेल नहीं होने देते। जिसे गुरु का संबल मिल गया ,वह समझ लो परीक्षा में उत्तीर्ण हो गया। जिसने अपने आप पर भरोसा किया, उसकी मटकी नदी के बीचो-बीच टूटनी निश्चित है ।

आमतौर पर जिन विषयों में प्रैक्टिकल की परीक्षा भी होती है उनमें तो बिना गुरु के आशीर्वाद के छात्र के लिए परीक्षा की वैतरणी प्राप्त करना असंभव है। गुरु के ऊपर यह निर्भर करता है कि वह प्रैक्टिकल में कितने नंबर छात्र को दिलवाए । आंतरिक परीक्षा में सब कुछ गुरु के हाथ में रहता है। लेकिन अगर बोर्ड की भी परीक्षाएं हैं और बाहर से भी कोई परीक्षक प्रैक्टिकल की परीक्षा लेने आ रहा है तब भी वह लोकल-गुरु से विचार विमर्श अवश्य करता है तथा उसकी सलाह पर ही छात्रों को अंक प्रदान किए जाते हैं । लोकल-गुरु अपने परम प्रिय शिष्यों को ज्यादा से ज्यादा नंबर दिलाने के लिए प्रयत्नशील रहते हैं । शिष्य को केवल गुरु के चरण दबाने होते हैं । बाकी सारा कार्य गुरु के ऊपर छोड़ दिया जाता है । गुरु कह देते हैं -“बस तुम मेरी चमचागिरी करते रहो । मैं तुम्हारी सारी जिम्मेदारियों का निर्वहन कर लूंगा।”

प्रैक्टिकल के मामले में गुरु की सत्ता सर्वोच्च होती है । जब तक गुरु न चाहे ,शिष्य प्रैक्टिकल करना नहीं सीख सकता । जिन छात्रों को गुरु की महत्ता का ज्ञान नहीं होता ,वह गुरु का अनादर कर बैठते हैं । कई बार उससे उलझ लेते हैं। परिणाम यह होता है कि वर्षों तक वह एक ही कक्षा में आकर पढ़ते रहते हैं लेकिन कभी भी प्रैक्टिकल करना नहीं सीख पाते। गुरु उन्हें सिखाता ही नहीं है । चमचागिरी न करने वाले छात्रों को भला कौन अपना ज्ञान देना चाहेगा ? जो छात्र बराबर गुरु के चरणो में दंडवत प्रणाम करने में निपुण हो जाते हैं, केवल वही गुरु से प्रैक्टिकल के गुर सीख पाते हैं ।
कई छात्र अनेक वर्षों तक जब प्रैक्टिकल में फेल होते रहते हैं ,तब जाकर उन्हें अपनी भूल का एहसास होता है और वह गुरु के चरण पकड़ लेते हैं । उनकी आँखों में आँसू और पश्चाताप का भाव देखकर गुरु अनेक बार उनसे ट्यूशन की फीस लेकर तथा अपने पैर दबवाकर उनको क्षमा कर देते हैं और फिर वह आगे की कक्षाओं में उन्नति करने लगते हैं । गुरु के इशारे को समझ कर जो छात्र चलता है , जीवन में उसी को सफलता मिलती है।

गुरु जी के लिए घर की साग-सब्जी लाने का काम भी जो शिष्य कोर्स की किताब पढ़ने के समान गहरी आस्था के साथ करते हैं ,उन्हें जीवन में आगे बढ़ने से कोई नहीं रोक सकता । जिन पर गुरु कुपित हो जाते हैं ,उनसे इतना काम लेते हैं कि वह कई बार परेशान होकर कालेज छोड़ कर चले जाते हैं । दूसरे कालेज में दूसरे गुरु को पकड़ते हैं। वहां पर उनको प्रसन्न करते हैं और तब जाकर उनके बिगड़े हुए काम सँवरते हैं । कुल मिलाकर शिक्षा के क्षेत्र में गुरु का ,गुरु की कृपा का और शिष्य के सेवाभाव का विशेष महत्व रहता है। जिसने गुरु की कृपा के रहस्य को जान लिया , उसका जीवन सफल हो जाता है । सार रूप में रहस्य यही है कि हे शिष्य ! गुरु की मक्खनबाजी से कभी जी मत चुराओ । गुरु की मक्खनबाजी अनंत कृपा को प्रदान करने वाली महान पुण्य- प्रदाता होती है।
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लेखक : रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा, रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451

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