*वेदना उपहार में भेजूँ तुझे तो*
हे शुचे! तुम मौन हो, स्वीकार लेना,
वेदना उपहार में भेजूँ तुझे तो।
मैं कठिन संघर्ष में जीने को तत्पर-
विष मिले उसको भी पीना चाहता हूँ।
मातमों की हर कहानी छोड़ पीछे,
भाग्य के चीथड़े को सीना चाहता हूँ
प्राणिके ! उर व्यञ्जना को धार लेना-
कुछ व्यथा आहार में भेजूँ तुझे तो।
हे शुचे ! तुम मौन हो, स्वीकार लेना-
वेदना उपहार में भेजूँ तुझे तो।
दीनता ये बदनसीबी, विघ्न बनकर,
प्रेम पथ में ही सदा यह शूल बोती।
मैं अनल पथ पे सदा चलता रहूँ पर,
कष्ट होता है मुखर जब तुम हो रोती।
भावनाओं को शुभे उहार लेना।
यंत्रणा व्यवहार में भेजूँ तुझे तो।
हे शुचे ! तुम मौन हो, स्वीकार लेना-
वेदना उपहार में भेजूँ तुझे तो।
शब्द भी निशब्द होने को हैं व्याकुल,
निज प्रणय को तुम नवल आयाम दे दो।
अर्थ खोता है प्रणय निज खोप में रह,
मान लो इस प्रीति को विश्राम दे दो।
निज व्यथा मन में प्रिय संहार लेना।
खिन्नता मनुहार में भेजूँ तुझे तो।
हे शुचे ! तुम मौन हो, स्वीकार लेना-
वेदना उपहार में भेजूँ तुझे तो।
✍️ पं.संजीव शुक्ल ‘सचिन’
मुसहरवा (मंशानगर)
पश्चिमी चम्पारण, बिहार