— दुनिया अब दुनिया नही रही —
यह दुनिया सच में अब
जीने के लायक नही रही
सच तो यही है कि दोस्त
अब देखने के लायक भी नही रही
मतलबी हैं सारे रिश्ते नाते,
मतलबी हैं दोस्त भी अब
निभा रहे हैं दिखावे को
नही हैं अब अपने से सब
हर कोई लगा के बैठा है
उम्मीद की मेरे ये काम आये
जब की दिल जानता है उसको
कि, यह किस काम से मेरे पास आये
एक प्राणी ही न्योछावर कर रहा खुद को
दुसरे बस मतलब से ही तो पास आये
अपना काम बनने की देरी तक
तक तक वो समझ बुझ तुम से दिखाए
वाह रे मालिक , क्या रचना कर डाली तुमने
कलियुग में मतलब के सब बना डाले तुमने
दिखावा ही तो दिखावा नजर आता है
न जाने क्या क्या बसा है रब्बा तेरे मन में
अजीत कुमार तलवार
मेरठ