चाँद
रूठता है तो कभी खुद मान जाता चाँद
सबको अपनी इन अदाओं से लुभाता चाँद
लोरियों में आ के बच्चों को सुलाता चाँद
रोज सपनों की नई दुनिया सजाता चाँद
बादलों से खेलता रहता गगन में ये
करता है अठखेलियाँ छुपता छुपाता चाँद
खूबसूरत तन ,बड़ा कोमल है इसका मन
चाँदनी तपती धरा पर है बिछाता चाँद
है नहीं शैतानियाँ बच्चों से इसकी कम
नखरे उनसे भी बड़े अक्सर दिखाता चाँद
काले काले बादलों से झाँकता है जब
प्रेमियों को तब नज़र अपना ही आता चाँद
देखकर हमको यूँ हो जाता है दीवाना
साथ चल पड़ता कदम हमसे मिलाता चाँद
‘अर्चना’ सिखलाता ये लड़ना अँधेरों से
नभ में होकर भी अकेला मुस्कुराता चाँद
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09-12-2019
डॉ अर्चना गुप्ता
मुरादाबाद